sadhu sundar singh biography in hindi साधु सुंदर सिंह की जीवनी हिंदी में
जय मसीह की दोस्तों ,
दोस्तों आज हम जिस प्रभु के दास के बारे में जाने वाले है उसका नाम इंडियन मिशनरी साधु सुंदर सिंह है। दोस्तों हमने पहले भी प्रभु के दास man of god smith wigglesworth के बारे में biography लिखा है उसको आप पढ़ सकते है ।
चलिए दोस्तों देखते है सुंदर सिंह के बारे में
Sadhu Sundar Singh Biography
साधु सुंदर सिंह का जन्म 3 सितम्बर 1889 में पटियाला एक सिख परिवार में हुआ था । उनकी माता बहुत ही धार्मिक थी एव प्रभु भक्त थी । वह हमेशा ध्यान देती थी की साधु सुंदर सिंह को आध्यात्मिक भोजन और आशीषे प्राप्त हो इसके लिए उन्हें वो साधुओ की संगत में भेजती थी। साधु सुंदर सिंह की माता उन्हें बहुत ही प्यार करती थी और वह चाहती थी की वह अपने धर्म से प्यार करे और वह भी एक आध्यत्मिक साधु बने। साधु सुंदर सिंह ने बचपन में ही भगवत गीता को पढ़ना और सात साल की उम्र में उसे कंठष्ठ के लिए समर्पित कर दिया था । उनके एक परम मित्र के मृत्यु ने उन्हें बहुत से पवित्र ग्रन्थ पढ़ने के लिए प्रेरित किया । जब रात्रि को सब सो जाते तब सीखो की ग्रन्थ साहेब , हिदुओ के वेद , और मुसलमानों के कुरान को पढता था । सुंदर की माता ने उन्हें अंग्रेजी सीखने के लिए मिशन स्कूल में भेजती थी ।
साधु सुन्दर सिंह की माता का देहांत तब हुआ जब वे १४ वर्ष के थे, जिसे वह् हिंसा और निरशा में डुब गये। उन्होंने मिशन स्कूल छोड़ दिया और सरकारी स्कूल में पढ़ने लगा । उन्होने अपना क्रोध इसाई मिशनरीयों पे निकाला, वे इसाई लोगो को सताने लगे और उनके अस्था का अपमान करने लगे। उनके धर्म को चुनोती के लिये उन्होने एक बाइबल खरीदा और उसका एक एक पन्ना अपने मित्र के समने जला दिया। वह अपने दोस्तों के साथ ईसाइयो को सताता था और उनके ऊपर पथ्थर और कीचड़ फेकता था और उसे वह अशांत, व्याकुल रहने लगा । उसके बाद वह बाइबिल पढ़ने लगा था ।
एक दिन वह भोर को इस निश्चित के साथ 3 बजे उठ गया की या तो उन्हें शांति मिल जाये या तो वह अपने घर के पास से गुजरने वाली रेलगाड़ी के नीचे अपना जीवन समाप्त कर देगा । वह स्नान करके बाद प्रार्थना करना चालू किया ” हे परमेश्वर, अगर कोई परमेश्वर है तो मुझे दर्शन दे और मुझे उद्धार का मार्ग दिखाए और मुझे शांति दे । ” उसके बाद यीशु मसीह उनके सामने प्रगट हुवे और यीशु ने अपने छिदे हुवे हाथ दिखाए और उनको कहा की तुम मुझे क्योँ सताता है और में तुम्हारा उद्धार कर्ता हूँ। मार्ग सत्य तथा जीवन में ही हूँ । उसके बाद साधु सूंदर सिंह की आध्यात्मिक भूख तृप्त हो गयी है और उस महिमामय दर्शन से उनका हृदय शांति और आनंद से भर गया।
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साधु सुंदर सिंह इस अनुभव के तुरंत बाद अपने पिता के पास गए और कहा की अब में मसीह हूँ । पहले तो उनके पिता ने विश्वास नहीं किया लेकिन बाद में किया और उनका परिवार आचार्यचकित हो गया और कहने लगा अपने माता के धर्म को मत त्यागो और हम सबको शर्मंदगी में मत डालो। उनके चाचा उनको बड़े भवन में ले गया और संपत्ति , रत्नो, जेवरत दिखाया और कहा की तुम मसीह को छोड़ दो तो ये सब तुम्हारा होगा । उनके हृदय में मसीह का प्रेम अधिक बलवान था और उसने मसीह को ना छोड़ा । उनको गर से निकल दिया गया और उन्होंने एक पेड़ के नीचे रात को बिताया । उनको फिर से घर आने की अनुमति मिली लेकिन उनको घर के बहार ही खाना दिया जाता था और उनके यहा निम्न जाती के मजदुर रहते थे उनके साथ रहना पड़ता था । साधु सुंदर सिंह ने उन सब परेशानियों को सह लिया जो उनको क्रूस उठाने की शुरुआत थी । अंत में उनको जहर देकर घर से निकाल दिया और वह बीमार हो गए और मसीह लोगोने उनको बचाया । उसके बाद वह लुधियाना गया और वह पर मिशनरियों के साथ रहा और उसके बाद शिमला गया और वंहा पर अपने 16 वे जन्मदिन पर उन्होंने बापस्तिमा लिया । उसके बाद प्रार्थना और बाइबिल का अध्ययन के बाद वह मसीह साधु बन गया और मसीह की सेवा करने निकाल पड़ा । उनके जीवन का आदर्श वाक्य था –
पर ऐसा न हो, कि मैं और किसी बात का घमण्ड करूं, केवल हमारे प्रभु यीशु मसीह के क्रूस का जिस के द्वारा संसार मेरी दृष्टि में और मैं संसार की दृष्टि में क्रूस पर चढ़ाया गया हूं।(गलतियों 6:14)
साधु सुंदर सिंह लड़का ही था और उन्होंने अपने स्वामी के लिए भूखा रहना , ठण्ड , बंदी रहना, दुःख उठाना आदि यातनाओं को सहन करना सिख लिया था ।
उन्होंने पंजाब , काश्मीर , अबगानिस्तान, तिब्बत पहाड़ियों को पार करते अपने स्वामी का प्रचार करते फिर और जो मसीह को नहीं जानते थे उनको सुसमाचार सुनाते फिरा। उन्होंने बहुत से दुखो का सामना करना पड़ा और जंगलो में रात बितानी पड़ी । ठण्ड , बारिश और बर्फ का सामना भी करना पड़ा । कभी कभी उन्हें जंगली जानवरो के साथ भी रहना पड़ा । एक दिन उसके पास में तेंदुआ कुछ दुरी पर सो रहा था और एक दिन कोबरा साप उनके कम्बल में था । वह नंगे पैर चला करता था इसलिए उनके पैरो से खून बहता था और पथ्थरो और बर्फ से उनके पाँव कट जाते थे इसलिए उन्हें लहूलुहान पैरो वाले प्रेरित कहा जाता था ।
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एक बार साधु सुंदर सिंह जंगल से होकर जा रहे थे वह डाकुओं का इलाका था कुछ आदमी उस पर झपड़ पड़े और चाकू निकल के उनकी ओर बढ़ा और साधु सुंदर सिंह ने सोचा मेरा अंत आ गया तब सुंदर ने प्रार्थना करना चालू कर दिया और डाकुओं को आचार्य हुवा वह पूछने लगा की आप कौन हो । सुंदर ने कहा की वह एक मसीह साधु है और वह नया नियम निकाल के धनवान और लाजर का वाक्य पढ़ने लगा वह डाकू उसे एक गुफा में ले गया और बहुत से कंकाल को दिखाया और कहा की इन सबको मैंने मारा हे क्या मसीह मुझे भी माफ़ करेगा और सुंदर ने उनको पश्चाताप करने में अगुवाई की।
वह तिब्बत गया जो जादूटोना और अंधविश्वास का गढ़ था वंहा पर भी सुंदर ने सुसमाचार का प्रचार किया । वह चुनैती देता रहा की अपने मसीह का क्रूस उठा के अपने स्वंय का इंकार करते हुवे क्रूस उठा के मसीह के लिए जिए ।
वह श्रीलंका , बर्मा , चीन , तथा जापान भी गए । उन्होंने इंग्लैंड , अमेरिका , तथा यूरोप के देशो की भी यात्रा किया ।
साधु सुंदर सिंह जंहा भी गया वंहा उसमे यीशु मसीह की समानता देखी गयी।
उन्होंने अपने एक दोस्त को पत्र लिखा की मैं तिब्बत जा रहा हूँ । और लौटने का समय हो गया पर वह न लौटा न ही उनके बारे में कोई समाचार प्राप्त हुआ ।
दोस्तों आपको साधु सुंदर सिंह के बारे में जान के कैसा लगा comment कर के जरूर बताएगा ।
God bless you…….